Bank stake sale: सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSU Banks) में अपनी हिस्सेदारी घटाने की योजना पर तेज़ी से आगे बढ़ रही है. इस दिशा में आज मंगलवार को एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई है, जिसमें लेनदेन सलाहकारों की नियुक्ति को अंतिम रूप दिया जाना है.
इस कदम से सरकार का उद्देश्य है कि बैंक ऑफ महाराष्ट्र, इंडियन ओवरसीज बैंक (IOB), यूको बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और पंजाब एंड सिंध बैंक में सीमित हिस्सेदारी बेची जाए, जिससे पूंजी जुटाई जा सके और नियामक मानकों को पूरा किया जा सके.
पांच प्रमुख बैंकों में होगी हिस्सेदारी बिक्री
सरकार ने 5 प्रमुख सार्वजनिक बैंकों को चुना है, जिनमें अगले वित्तीय वर्ष में हिस्सेदारी बिक्री की योजना बनाई गई है. ये बैंक हैं:
- बैंक ऑफ महाराष्ट्र
- इंडियन ओवरसीज बैंक (IOB)
- यूको बैंक
- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
- पंजाब एंड सिंध बैंक
इन बैंकों में 20% तक की हिस्सेदारी बेचने के लिए सरकार क्यूआईपी (Qualified Institutional Placement) और ओएफएस (Offer for Sale) जैसे विकल्पों पर काम कर रही है.
तकनीकी और कानूनी सलाहकारों की होगी नियुक्ति
आज होने वाली बैठक में अंतर-मंत्रालयी समूह (IMG) द्वारा इस प्रक्रिया में तकनीकी और कानूनी सलाहकारों की नियुक्ति को मंजूरी दिए जाने की संभावना है.
इस समूह की सह-अध्यक्षता वित्तीय सेवा विभाग (DFS) और DIPAM के सचिव करते हैं. यह फैसला PSU बैंकों में विनिवेश को आगे बढ़ाने का अहम हिस्सा माना जा रहा है.
सरकारी स्वामित्व और SEBI नियमों की स्थिति
मार्च 2025 तिमाही तक BSE पर उपलब्ध शेयरधारिता डेटा के अनुसार केंद्र सरकार की निम्नलिखित बैंकों में हिस्सेदारी काफी अधिक है:
- बैंक सरकारी हिस्सेदारी (%)
- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया 89.3%
- इंडियन ओवरसीज बैंक 94.6%
- यूको बैंक 91%
- पंजाब एंड सिंध बैंक 93.9%
SEBI के नियमों के अनुसार किसी भी कंपनी में 25% सार्वजनिक हिस्सेदारी होना अनिवार्य है, लेकिन सरकारी बैंकों को अगस्त 2026 तक इससे छूट दी गई है.
सरकार अब इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हिस्सेदारी में कटौती की प्रक्रिया शुरू कर रही है.
यूको बैंक से 2,500 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य
- यूको बैंक के मामले में, सरकार करीब 10% हिस्सेदारी बेचकर लगभग 2,500 करोड़ रुपये जुटाने की योजना पर काम कर रही है.
- यह कदम न केवल सरकार को राजस्व जुटाने में मदद करेगा, बल्कि बाजार में बैंक की सार्वजनिक भागीदारी को भी मजबूत बनाएगा.
हिस्सेदारी बिक्री के पीछे का उद्देश्य
सरकार की यह रणनीति कई महत्वपूर्ण उद्देश्यों को पूरा करने के लिए बनाई गई है:
- सरकारी राजस्व में वृद्धि करना
- बैंकों में प्रतिस्पर्धा और दक्षता बढ़ाना
- निजी निवेशकों को अवसर देना
- SEBI के 25% सार्वजनिक हिस्सेदारी नियम का पालन करना
- नियामक मानकों को मजबूत करना
निवेशकों के लिए क्या हैं अवसर?
- इस हिस्सेदारी बिक्री से निजी और संस्थागत निवेशकों को मिलेगा:
- सरकारी बैंकों में निवेश का सीधा अवसर
- प्रबंधन में सुधार की संभावना से अधिक रिटर्न की उम्मीद
- सरकारी गारंटी के साथ सुरक्षित निवेश माहौल
- हालांकि, निवेशकों को यह ध्यान रखना होगा कि बैंकिंग सेक्टर की स्थिरता और भविष्य की रणनीति पर नज़र बनाए रखें.
क्या यह निजीकरण की ओर पहला कदम है?
- सरकारी हिस्सेदारी में कटौती के इस कदम को कई विशेषज्ञ बैंकों के संभावित निजीकरण की तैयारी के तौर पर भी देख रहे हैं.
- हालांकि फिलहाल यह सीमित विनिवेश है, लेकिन बैंकों में निजी निवेश की हिस्सेदारी बढ़ने से भविष्य में बड़े बदलाव संभव हैं.
आगे की राह: क्या होगा असर?
सरकार की इस योजना का सीधा असर निम्नलिखित क्षेत्रों पर पड़ेगा:
बैंकिंग सेक्टर में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी
बाजार में निवेशकों की रुचि बढ़ेगी
बैंकों की संचालन क्षमता और जवाबदेही में सुधार होगा
नवीन निवेश योजनाओं के लिए पूंजी उपलब्ध होगी